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Civics ch 2 सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली

 विविधता मानव समाज का अनिवार्य गुण है। मानवीय सभ्यता के दीर्घकालिक विकास की प्रक्रिया में अगणित तत्वों के प्रभाव की परिणति रंग जाती व धर्म पर आधारित होती है।  अगर विभिन्न मानव समूहों के बीच के प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष को शक्ति एवं हिंसा के बल पर सुलझाने की कोशिश करते है तो जिस समूह के पास ताकत होगी वह समूह दूसरे समूह को दबा देगा। उसकी इच्छाओं एवं हितों का सम्मान नहीं करेगा। इससे कमजोर समूह को शक्तिशाली समूह की बात माननी होगी। और इससे असंतोष एवं आक्रोश पैदा होगा जिससे विभिन्न समूह ज्यादा दिन तक साथ नहीं रह पाएंगे।  लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था ही एकमात्र ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें ताकत सभी के हटी में होती हैं, सभी को राजनैतिक शक्तियों में हिस्सेदारी एवं साझेदारी करने की व्यवस्था की जाती है।  इसी कारण भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक एवं कमजोर समुदाय के लोगों के लिए भी विशेष व्यवहार की गई है।  लोकतंत्र में व्यापारी ,उद्योगपति, किसान, शिक्षक, औद्योगिक मजदूर जैसे संगठित हित समूह सरकार की विभिन्न समितियों में प्रतिनिधि बनकर सत्ता में भागीदारी करते है या अपने हित के लिए सरक...

Class - 10th Civics chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

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  Bihar Board Notes Class - 10th Civics chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी -  June 19, 2025  जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए किया गया शासन ही लोकतंत्र कहलाता है।  लोकतंत्र ऐसी व्यवस्था है जिसमें लोगों के लिए एवं लोगों के द्वारा ही शासन चलाया जाता है।  शासन में लोक प्रतिनिधि लोगो के हित का तथा उसके इच्छा का सर्वोपरी महत्व देना चाहते है। यही कारण है कि शासन के लोकतांत्रिक व्यवहार समाज में उभरते द्वंद से प्रभावित होता है।  1961 में मुंबई में मराठियों की संख्या 34% थी जो 2001 में बढ़कर 57% से अधिक हो गई। जिसके कारण उत्तर भारतीय हिंदी भाषी लोगों को दूर - दूराते रहते हैं।  रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षा में मैसूर में बिहारी छात्रों के साथ मारपीट की गई। असम में बिहारियों की हत्या की गई।  यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इसमें हिंसा कितनी में शिकार होनेवाले की पहचान केवल क्षेत्र- विशेष था। न कि जाती , धर्म, संप्रदाय।  मैक्सिको के ओलंपिक समारोह में विरोध का रूप नस्ल पर आधारित था। बेल्जियम में सामाजिक विभाजन का आधार , नस्ल और जाति नहीं बल्कि ...

Class 10th Economics chapter - 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

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Class 10th Economics chapter - 6 वैश्वीकरण

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Class 10th Economics chapter –5 रोजगार एवं सेवाएंl

ऐसे लोग जो काम करने के लायक होते हैं और जिन्हें उचित पारिश्रमिक पर काम नहीं मिलता, उन्हें बेरोजगार कहा जाता है।   भारत में कृषि लोगों के रोजगार उपलब्ध करने का सर्वाधिक बड़ा क्षेत्र है, इसके साथ-ही-साथ उद्योग व्यवसाय, स्वास्थ्य, यातायात आदि ऐसे क्षेत्र जिससे लोगों को विभिन्न प्रकार की सेवाएँ मिलती हैं।  जब व्यक्ति अपने परिश्रम एवं शिक्षा के आधार पर जीवकोपार्जन के लिए धन एकत्रित करता है एकत्रित दल को जब पूँजी के रूप में व्यवहार किया जाता है और उत्पादन के क्षेत्र में निवेश किया जाती है तो सेवा क्षेत्र उत्पन्न होता है।  आर्थिक विकास का क्षेत्र आर्थिक विकास के मुख्य रूप से तीन क्षेत्र हैं —   (क) कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector)  (ख) उद्योग क्षेत्र (Industrial Sector)  (ग) सेवा क्षेत्र (Service Sector) (क) कृषि क्षेत्र (Agriculture Sector)-   भारत एक कृषि प्रधान देश है। अत्यधिक जनसंख्या के कारण कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर क्षीण हो गया है। फलस्वरूप कृषि क्षेत्र में 'छिपी हुई बेराजगारी' एवं अन्य बेरोजगारी पाए जाने लगे हैं।  (ख) उद्योग क्षेत्...

Class 10th Economics chapter 4 हमारी वित्तीय संस्था

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वित्तीय संस्थाएं -  हमारे देश की वे संस्थाएं  जो आर्थिक विकास के लिए उद्यम एवं व्यवसाय के वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता है ऐसी संस्थाओं को वित्तीय संस्थाएं कहते हैं।  जैसे - RBI  सरकारी वित्तीय संस्थाएं - सरकार द्वारा स्थापित एवं संपोषित वित्तीय संस्थाओ को सरकारी वित्तीय संस्थाएं कहते हैं।  जैसे - SBI,CBI,PNB, इलाहाबाद बैंक इत्यादि।  अर्द्ध सरकारी वित्तीय संस्थाएं - ऐसी वित्तीय संस्थाएं जो सरकार के केंद्रीय बैंक (RBI) के निर्देशन में उनके द्वारा स्थापित मापदंडों पर समाज के लोगों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, उसे अर्द्ध सरकारी वित्तीय संस्थाएं कहते हैं।  सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएं - छोटे परिवार पैमाने पर गरीब जरूरतमंद लोगों को स्वयं सेवी संस्था के माध्यम से कम ब्याजने  पर साख अथवा ऋण की व्यवस्था करने वाली संस्था को सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएं कहते हैं।  वित्तीय संस्थाएं दो प्रकार की होती है – (क) राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं  (ख) राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थाएं    (क) राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ (National Financial Insti...

Class 10th Economics chapter-3 मुद्रा बचत एवं साख

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 मार्शल ने कहा है कि आधुनिक युग की प्रगति का श्रेय मुद्रा को ही है।   ट्रेस्काट के अनुसार यदि मुद्रा हमारी अर्थव्यवस्था का हृदय नहीं है तो रक्त प्रवाह अवश्य है।  मुद्रा का इतिहास  मुद्रा को आधुनिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है।  विनिमय के दो रूप है — वस्तु विनिमय प्रणाली  मौद्रिक विनिमय प्रणाली  वस्तु विनिमय प्रणाली   जब एक वस्तु के बदले दूसरे वस्तु का आदान प्रदान होता है तो उसे वस्तु विनिमय प्रणाली कहते है।  जैसे - गेहूं से चावल बदलना, सब्जी से तेल बदलना, दूध से दही बदलना आदि।  वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयां  वस्तु विनिमय प्रणाली की निम्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था -  आवश्यकता के दोहरे संयोग का आभाव मूल्य के सामान्य मापक का आभाव मूल्य संचय का आभाव सह विभाजन का आभाव भविष्य के भुगतान की कठिनाई मूल्य हस्तांतरण की समस्या मौद्रिक विनिमय प्रणाली  जब किसी वस्तु के बदले में मुद्रा का आदान प्रदान किया जाता है तो उसे मौद्रिक विनिमय प्रणाली कहते हैं।  वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयो को दूर करने के लिए मुद्रा का आव...