Class 10th History chapter 2 समाजवाद एवं साम्यवाद

समाजवाद एक ऐसी विचारधारा हैं जिसने आधुनिक काल में समाज को एक नया आवाम दिया। 
समाजवाद में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है। 


समाजवाद की उत्पत्ति 
समाजवाद का विकास औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप 18वी शताब्दी में हुआ था।  उद्योगों पर पूंजीपतियों का स्वार्थ बढ़ रहा था और श्रमिकों का कोई अधिकार नहीं था, जिसके कारण  पूंजीपति और अमीर तथा श्रमिक और गरीब होते जा रहे थे। 
इस कारण आर्थिक दृष्टि से समाज का विभाजन दो भज में हो गया 
1. पूंजीपति वर्ग 
2.श्रमिक वर्ग
कुछ व्यक्तियों ने सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में एक नवीन विचारधार का प्रतिपादन किया जिसे समाजवाद के नाम से जाना जाता है। 


 यूटोपियन समाजवाद 
यूटोपियन समाजवाद को स्वप्नदर्शी समाजवाद कहा जाता है। 
फ्रांसीसी विचारक सेंट साइमन का मानना था कि समाज को निर्धन वर्ग को नैतिक और भौतिक  उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए। 

लुई ब्ला - आर्थिक सुधार को प्रभावशाली बनाए के लिए पहले राजनीतिक सुधार आवश्यक है। 

रॉबर्ट ओवन -  संतुष्ट श्रमिक ही वास्तविक श्रमिक है। 

कार्ल मार्क्स 

कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 ई को जर्मनी में राइन प्रांत के टीयर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। कार्ल मार्क्स के पिता हेनरिक मार्क्स एक प्रसिद्ध वकील थे। मार्क्स ने बोन विश्वविद्यालय में विधि की शिक्षा प्राप्त की  परन्तु 1836 में वे बर्लिन विश्वविद्यालय चले गए। 
1843 में बचपन की मित्र जेनी से विवाह किया। 
कार्ल मार्क्स की मुलाकात 1844 में फ्रेडरिक एंगेल्स से हुई जिससे उनकी मित्रता हुई। 
मार्क्स ने एंगेल्स के साथ मिलकर 1848 में एक  साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया। जिसे आधुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है।  
कार्ल मार्क्स ने 1867 में दास कैपिटल नामक पुस्तक की रचना की जिसे समाजवादियों का बाइबल कहा जाता है। 

  • कार्ल मार्क्स के सिद्धांत -
  1. द्वंदात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत
  2. वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
  3. इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या 
  4. मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
  5. राज्यहीन व वर्गहीन समाज की स्थापना 
  • कार्ल मार्क्स के अनुसार छः ऐतिहासिक चरण है- 
  1. आदिम साम्यवादी युग
  2. दासता का युग
  3. सामंती युग 
  4. पूंजीवादी युग
  5. समाजवाद युग
  6. साम्यवादी युग 
  • 1864 ई में प्रथम अंतरराष्ट्रीय संघ की स्थापना की गई थी जिसमें मार्क्स ने नारा दिया "अधिकार के बिना कर्तव्य नहीं और कर्तव्य के बिना अधिकार नहीं"। 
  • 14 जुलाई 1889 को पेरिस में द्वितीय अंतराष्ट्रीय संघ का सम्मेलन हुआ जिसमें 20 देश के 400 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 
  • इस सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष 1 मई के दिन मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा। 
  • मजदूरों के लिए 8 घंटे की कार्य दिवस तय किया गया और इसका अंतराष्ट्रीय सचिवालय ब्रुसेल्स में स्थापित किया गया। 
  • 1 मई 1890 को सारे यूरोप और अमेरिका में हड़ताल प्रदर्शन किया और तब से 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है।  

1917 की बोल्शेविक क्रांति
इस क्रांति ने केवल जार के शासन का अंत नहीं किया बल्कि सामाजिक आर्थिक और व्यवसायिक क्षेत्रों में कुलीनों ,पूंजीपतियों और जमींदारों की शक्ति का अंत कर, मजदूरों और किसानों की सत्ता को स्थापित किया। 

इस क्रांति के निम्नलिखित कारण है - 

1. जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन 
  • 1917 में रूस में रोमनोव वंश का शासन था, रूस के सम्राट को जार कहा जाता था। राजा दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था उसे आम लोगों के दुख की कतई चिंता नहीं थी। अतः गलत सलाहकारों के कारण जार की स्वेच्छाचारिता बढ़ती गई और जनता की स्थिति बद से बत्तर होती गई। 

2. कृषकों की दयनीय स्थिति 
  • रूस की जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग कृषक ही थे। और उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी। 1861 में जार अलेक्जेंडर द्वितीय के द्वारा कृषि दासता समाप्त कर दी गई। परंतु इससे किसानों की स्थिति में कोई  सुधार नहीं हुआ।
 
3. मजदूरों की दयनीय स्थिति 
  • रूस में मजदूरों को अधिक काम करना पड़ता था परंतु  उनकी मजदूरी काफी कम थी। इसलिए मार्क्स ने कहा था कि मजदूरों के पास सिवाय बेड़ियों के खोने के लिए कुछ नहीं है। 

4. औद्योगिकरण की समस्या 
  • यहां औद्योगिकरण केवल दो शहरों में स्थित था  सेंट पीटर्सबर्ग और मास्को। 
5. रूसीकरण की नीति
  • जार ने देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा, और संस्कृति लड़ने का प्रयास किया। जिससे अल्पसंख्यकों में हलचल मच गई और 1863 में इस नीति के विरुद्ध पोलो ने विद्रोह किया। 

6. विदेशी घटनाओं का प्रभाव
  • क्रीमिया युद्ध 1904 - 05 का रूस - जापान युद्ध ने पहली क्रांति को जन्म दिया। 
  • जापान से पराजय तथा 1905 क्रांति 
क्रीमिया की युद्ध के पराजय के कारण 1905 में रूस में क्रांति हो गई। 

खूनी रविवार
  • 9 जनवरी 1905 को लोगों का समूह रोटी दो के नारे के साथ सड़कों पर प्रदर्शन करने हुए सेंट पीटर्सबर्ग की महल की ओर जा रहे थे लेकिन जार की सेना ने निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाई जिसमें हजारों लोग मारे गए। इसलिए इस दिन को खूनी रविवार (लाल रविवार) के नाम से जाना जाता है। 
7. रूस में मार्क्सवाद का प्रभाव तथा बुद्धिजीवियों का योगदान 
  • लियो टॉलस्टाय ने वार एंड पीस  नामक उपन्यास की रचना की। 
  • दोस्तोवस्की, तुर्गनेव जैसे चिंतक ने क्रांति के विचार को प्रोत्साहन दिया। 
  • मार्क्सवादियों ने 1898 ई में रशियन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। 
  • 1903 ई में यह पार्टी टूटकर बोल्शेविक (बहुमतवाला दल) और मेनशेविक (अल्पमतवाला दल) में बदल गई। 
  • 1901 में सोशलिस्ट रिवॉल्यूशनरी पार्टी का गठन हुआ जो किसानों की मांग को उठती थी। 
8.तात्कालिक कारण - प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय
प्रथम विश्वयुद्ध में रूस मित्र रात की ओर से शामिल था। रूस की सेना की हार हो रही थी। इस कारण जार निकोलस द्वितीय ने सेना की कमान अपने हाथों में ले ली। 


मार्च की क्रांति एवं निरंकुश राजतंत्र का अंत
  • 7 मार्च 1917 को पेट्रोग्राड की सड़कों पर किसान मजदूरों ने जुलूस निकला। उन्होंने रोटी दो के नारे लगाए। 
  • 8 मार्च को कपड़ों की मील की महिलाएं  ने रोटी की मांग करते हुए हड़ताल किया, जिसमें अन्य मजदूर भी शामिल हो गए।  जुलूस में लाल झंडो की भरमार थी।
  • 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया गया। 
  • जब सेना को गोली चलने को कहा तो जार की सबसे विश्वस्त टुकड़ी प्रैओब्राशेंसकी रेजिमेंट ने विद्रोह कर दिया। 
  • परिणास्वरूप 12 मार्च 1917 को जार ने गद्दी त्याग दी। यह फरवरी की रूसी क्रांति थी। 
  • सर्वप्रथम लोबाव के नेतृत्व में 15 मार्च को एक सरकार का गठन हुआ। 
बोल्शेविक क्रांति
रूसी क्रांति के राजनीतिक मंच पर लेनिन का प्रदर्भाव हुआ। 
लेनिन अप्रैल 1917 में जर्मनी की सहायता से पेट्रोग्राद पहुंचा, तब रूस की जनता का उत्साह बढ़ गया। 
  • लेनिन ने बोल्शेविक दल का कार्यक्रम स्पष्ट किया जो अप्रैल थीसिस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 
  • लेनिन ने तीन नारे दिए - भूमि,शांति और रोटी 
  • 7 नवंबर 1917 को बोल्शेविक ने पेट्रोग्राद के रेलवे स्टेशन,बैंक,डाकघर,टेलीफोन केंद्र,कचहरी तथा अन्य सरकारी भवनों पर अधिकार कर लिया। 
  • केरेन्सकी रूस छोड़कर भाग गया। 
  • इस प्रकार रूस की महान बोल्शेविक क्रांति खत्म हुई। 
  • अब शासन की बागडोर बोल्शेविक के हाथों में आ गई जिसका अध्यक्ष लेनिन को बनाया गया और ट्रॉटस्की विदेश मंत्री बना। 
  • सर्वप्रथम लेनिन ने जर्मनी से ब्रेस्टलिटोवस्क  की संधि की और रूस विश्वयुद्ध से बाहर हो गया। 
  • जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका जापान ब्रिटेन और फ्रांस ने सोवियत रूस पर आक्रमण कर दिया। 
  • ट्रॉटस्की के नेतृत्व में एक विशाल लाल सेना का गठन किया गया। 
  • लाल सेना ने विदेशी हमले का सामना किया तो आंतरिक विद्रोह को दबाने के लिए चेका नामक गुप्त पुलिस संगठन बना गया। 
  • 1918 में विश्व का पहला समाजवादी शासन स्थापित करने वाला देश रूस का नया संविधान बनाया गया।  जिसके द्वारा रूस का नया नाम सोवियत समाजवादी गणराज्यों का समूह (USSR)  के रूप में परिवर्तित हुआ। 
  • लेनिन ने 18 वर्ष से अधिक उम्र के वैसे सभी नागरिक को मताधिकार प्रदान किया जो अपनी आजीविका चलते हो। 
  • बोल्शेविक दल का नाम बदलकर साम्यवादी दल कर दिया और लाल रंग के झंडे पर हसुए और हथौड़े को सुशोभित कर देश का राष्ट्रीय झंडा तैयार किया गया। 
  • फैक्ट्री में श्रमिक हड़ताल पर कराई से प्रतिबंध लगाया गया, किसानों ने जबरदस्ती वसूली के भय से अपना अनाज जलाना शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप 1920-21 में उत्पादन का स्तर काफी गिर गया। 
नई आर्थिक नीति
1921 ई में लेनिन ने एक नई नीति की घोषणा की जिसमें मार्क्सवादी मूल्यों से कुछ हद तक समझौता करना पड़ा। 
  1. किसानों से अनाज के स्थान पर एक निश्चित कर लगाया गया। बचे हुए अनाज का किसान मनचाहा इस्तमाल कर सकते है। 
  2. यह सिद्धांत कायम रखा कि जमीन राज्यों की है। 
  3. 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योग को व्यक्तिगत रूप से चलाने का अधिकार मिल गया।
  4. उद्योग का विकेंद्रीकरण कर दिया गया। 
  5. विदेशी पूंजी भी सीमित तौर पर आमंत्रित की गई। 
  6. व्यक्तिगत संपति और जीवन की बीमा भी राजकीय एजेंसी द्वारा शुरू किया गया। 
  7. विभिन्न स्तरों पर बैंक खोले गए। 
  8. ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई। 
1924 ई में लेनिन की मृत्यु हुई तो उतराधिकार की समस्या आ खड़ी हुई। 
1929 में ट्रॉटस्की को निर्वासित कर दिया गया और 1930 के दशक तक वे सभी नेता खत्म हो गए जिन्होंने क्रांति में या उसके बाद कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 
लेनिन के बाद स्टालिन सत्ता में आया। स्टालिन कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव था और 1953 में अपनी मृत्यु तक सत्ता में बना रहा। 
स्टालिन ने अपनी अथक प्रयास से रूस को विश्व के मानचित्र पर एक शक्तिशाली देश के रूप में सामने लाया। 
रूसी क्रांति का प्रभाव
  1. इस क्रांति ने सर्वहारा वर्ग की सत्ता रूस में स्थापित करवाई। 
  2. रूसी क्रांति के बार विश्व दो भागों में विभाजित हो गया।   साम्यवादी विश्व और पूंजीवादी विश्व
  3. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूंजीवादी विश्व तथा सोवियत रूस के बीच शीतयुद्ध की शुरुआत हुई। 
  4. रूसी क्रांति के बाद आर्थिक आयोजन के रूप में एक नवीन आर्थिक मॉडल आया। 
  5. इस क्रांति की सफलता ने एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश मुक्ति को भी प्रोत्साहन दिया। 
वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 



By~ Shashank Kumar Prajapati 






















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